Wednesday 29 January 2014

आज और कल...

My first poem,I have ever written..

आज मुस्किल में हूँ
             तो आज बुला लो
आज मन जाऊंगा
             तो आज मना लो
आज पानी है मेरी सूखती इन आंखो मे 
             थोड़ा पानी मेरे बदले मे बहा लो

आज पढ़ रहा हू मैं सभी हालातो को 
        आज देखता हू मैं सभी सौगातों को
सोचता हू की मेरा क़ौन है और क़ौन नहीं
         आज अपना जो बनाना है बना लो



आज इस दिल के सारे द्वार खुले हैं
         आज इस दिल मे अरमा भी बड़े हैं
आज तैयार हू सुनने को मैं झूठी बातें
          आज बातें भी बनाना है बना लो

आज खुद से ही खफा होके चला हू मैं
        हार के खुद से ही मायूस बढा  हू मैं
होके खुद्दार सदा जीतना सीखा मैने 
        आज मुझको जो हराना है हरा लो 

कल मेरे पास भी खुशियो का खजाना होगा
        मुझसे मिलने को तेरे पास बहाना होगा
जो अगर कल मेरी खुशियो को बटाना चाहो 
         आज मेरा दर्द बटाना है बटा लो

क्या पता कल मैं चला जाऊ ,बहुत दूर कहीं
       क्या पता कल मैं भूल जाऊ, बड़ी बात नहीं
कल तेरी आवाज भी सुनना मुझे मुस्किल होगा
       आज आवाज लगाना है लगा लो

तरस आता है तेरी देख के भोली सूरत 
     जो मुझे इस कदर कमजोर समझ बैठे हो 
कल मुझे चाहने वाले भी हजारो होंगे
     आज गर प्यार जताना है जता लो 

है अगर अरमा कोई तो कह डालो
    फिर अगर वक्त निकल जायेगा तो क्या होगा?
क्या पता वक्त कल मिले ना मिले है मुमकिन
   आज कोई राज बतiना है बता लो

आज मौजूद है हर वो शख्स मेरी नजरों में 
   कभी मुस्किल मे जिन्होने भी मेरा साथ दिया
है ये मुमकिन की तरसोगे झलक को मेरी 
    आज एक झलक दिखाना है दिखा लो

आज मुस्किल मे हूँ
             तो आज बुला लो
आज मन जाऊंगा
             तो आज मना लो

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